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उत्ते॑ बृ॒हन्तो॑ अ॒र्चय॑: समिधा॒नस्य॑ दीदिवः । अग्ने॑ शु॒क्रास॑ ईरते ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

ut te bṛhanto arcayaḥ samidhānasya dīdivaḥ | agne śukrāsa īrate ||

पद पाठ

उत् । ते॒ । बृ॒हन्तः॑ । अ॒र्चयः॑ । स॒म्ऽइ॒धा॒नस्य॑ । दी॒दि॒ऽवः॒ । अग्ने॑ । शु॒क्रासः॑ । ई॒र॒ते॒ ॥ ८.४४.४

ऋग्वेद » मण्डल:8» सूक्त:44» मन्त्र:4 | अष्टक:6» अध्याय:3» वर्ग:36» मन्त्र:4 | मण्डल:8» अनुवाक:6» मन्त्र:4


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शिव शंकर शर्मा

प्रथम इससे अग्निहोत्र का उपदेश देते हैं।

पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्यों ! (समिधा) इन्धन और चन्दन आदि सुगन्धित द्रव्यों से (अग्निम्+दुवस्यत) अग्नि की सेवा करो और (अतिथिम्) अतिथिस्वरूप इस अग्नि को (बोधयत) जगाओ और (अस्मिन्) इस अग्नि में (हव्या) हव्य द्रव्यों को (आजुहोतन) होमो ॥१॥
भावार्थभाषाः - भगवान् उपदेश देते हैं कि अग्निहोत्र प्रतिदिन करो। घृत, चन्दन, गुग्गुल, केसर आदि उपकरणों से शाकल्य तैयार कर सुशोभन कुण्ड बना उसमें अग्नि प्रदीप्त कर होमो ॥१॥
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शिव शंकर शर्मा

प्रथममग्निहोत्रमुपदिशत्यनया।

पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्याः ! समिधा। अतिथिमग्निम्। दुवस्यत=परिचरत सेवध्वम्। घृतैश्च। इमम्। बोधयत=जागरयत। अस्मिन्नग्नौ। हव्या=हव्यानि=हवींषि। आजुहोतन=आजुहुत च ॥१॥